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रोज सुबह हम उठ कर , चल देते हैं दफ्तर को। शाम सुहा

रोज सुबह हम उठ कर ,
चल देते हैं दफ्तर को।
शाम सुहानी पता नही
रात में भी हम दफ्तर को।
रोज यहीं बैठे सोचें हम
कल बेहतर हो जाएगा।
हमारे भी इस उजड़े चमन में
कोई गुलमोहर सा खिल जाएगा।
सपनो में सोचा करते हैं
एक दिन सच हो जाएगा। बस यही है जिंदगी एक आफिस वाले की
रोज सुबह हम उठ कर ,
चल देते हैं दफ्तर को।
शाम सुहानी पता नही
रात में भी हम दफ्तर को।
रोज यहीं बैठे सोचें हम
कल बेहतर हो जाएगा।
हमारे भी इस उजड़े चमन में
कोई गुलमोहर सा खिल जाएगा।
सपनो में सोचा करते हैं
एक दिन सच हो जाएगा। बस यही है जिंदगी एक आफिस वाले की

बस यही है जिंदगी एक आफिस वाले की