रचना नंबर –4 हास्य रस (गज़ल) अनुशीर्षक में नई नई शादी हुई पत्नी विदा होकर घर आई पति ने सुबह सुबह पत्नी पर ठंडी पानी उड़ेल आई गुस्से और बौखलाहट पत्नी झट उठ बैठी आँख से घूरते वो बोली कैसी प्रीत तुमने निभाई पति बोला हंँस कर कहा तेरे बाप ने मुझसे बोला है बेटी मेरे जिगर का टुकड़ा मेरे बगिया की फूल है दामाद जी बेटी मेरी है नाज़ुक सी फूल की कली कुम्हलाने मुरझाने मत देना इसलिए मैंने पानी डाली गलती हो गई जो मैंने तुमसे शादी रचाई सुधर जाओ आज से ही वरना रोज कराऊंँगी तेरी जग हंँसाई पति सोचा बेकार में ही कहते हैं लोग पत्नी नहीं मानती कभी भी अपनी गलती इसने तो आज से शुरू कर दी गलती हो गई मुझसे तुमसे शादी करके कहांँ से ये आफ़त मेरे गले पड़ी नई नई शादी हुई पत्नी विदा होकर घर आई पति ने सुबह सुबह पत्नी पर ठंडी पानी उड़ेल आई गुस्से और बौखलाहट पत्नी झट उठ बैठी आँख से घूरते वो बोली कैसी प्रीत तुमने निभाई पति बोला हंँस कर कहा तेरे बाप ने मुझसे बोला है बेटी मेरे जिगर का टुकड़ा मेरे बगिया की फूल है