तुमसा कोई दूसरा, बनाया ही न खुदा ने, तुम हो ही इतनी सुंदर, कोई हिसाब ही नहीं..!! (पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़ें) तुम्हारी वफ़ा का तो, कोई जवाब ही नहीं, तुम हो आफ़ताब भी, बस महताब ही नहीं..!! तेरी खुमारी तो अब, उतारे नहीं उतरती, तुम भी नशे सी हो चढ़ी, बस शराब ही नहीं..!! तुमको कहीं खुद में, छुपा लूंगा एक दिन, तुम भी बड़ी हो नाज़ुक, बस गुलाब ही नहीं..!!