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Humara apna ujda chaman क्या कहूं दिल भर आता है ;

Humara apna ujda chaman

क्या कहूं दिल भर आता है ; कुछ कहने को ना जी चाहता है ,
थी खुशहाली ये बेहली कैसे यूं है टूट पड़ी ; 
डूब रही मानव जाति हर पल पल अब हर घड़ी घड़ी ।
डरे डरे सेहमे सेहमे दूर दूर जो रहते हो ; जब किए करम ऐसे
 फ़िर क्यों तुम तिल तिल रोते हो ? फिर क्यों तुम तिल तिल रोते हो ??।।

है पैग़ाम ये अंजाम - सुंदर कुदरत से जब खिलवाड़ किया 
अपने स्वार्थ में उस प्रकृति को जलील किया ।
छेड़ा चीरा फाड़ा ; हरे जंगलों को जड़ से उखाड़ा ,
हर दम उसका दम निकाला और फिर उसे जलील किया ।।

हरियाली थी खुशहाली थी सबके सांसों में सांसें थीं,
उफ़...तुमने ये क्या किया ; उफ़ हमने ये क्या किया ...!!!

धरती ने अपने अंदर से अनमोल रत्न उपजाए थे
फिर भी ना माना तुमने की मनमानी हमने की मनमानी ।।

तड़पती धरती ने जब हलका सा ही रुख बदला ,
हुआ हाहाकार मची त्राहि त्राहि 
ये उस प्रकृति का है कोप हुआ ;
उस प्रकृति का प्रकोप हुआ ,
बस उस प्रकृति का ही प्रकोप हुआ ।।

    
                       Avantika Anil ✍️ humara apna ujda chaman
Humara apna ujda chaman

क्या कहूं दिल भर आता है ; कुछ कहने को ना जी चाहता है ,
थी खुशहाली ये बेहली कैसे यूं है टूट पड़ी ; 
डूब रही मानव जाति हर पल पल अब हर घड़ी घड़ी ।
डरे डरे सेहमे सेहमे दूर दूर जो रहते हो ; जब किए करम ऐसे
 फ़िर क्यों तुम तिल तिल रोते हो ? फिर क्यों तुम तिल तिल रोते हो ??।।

है पैग़ाम ये अंजाम - सुंदर कुदरत से जब खिलवाड़ किया 
अपने स्वार्थ में उस प्रकृति को जलील किया ।
छेड़ा चीरा फाड़ा ; हरे जंगलों को जड़ से उखाड़ा ,
हर दम उसका दम निकाला और फिर उसे जलील किया ।।

हरियाली थी खुशहाली थी सबके सांसों में सांसें थीं,
उफ़...तुमने ये क्या किया ; उफ़ हमने ये क्या किया ...!!!

धरती ने अपने अंदर से अनमोल रत्न उपजाए थे
फिर भी ना माना तुमने की मनमानी हमने की मनमानी ।।

तड़पती धरती ने जब हलका सा ही रुख बदला ,
हुआ हाहाकार मची त्राहि त्राहि 
ये उस प्रकृति का है कोप हुआ ;
उस प्रकृति का प्रकोप हुआ ,
बस उस प्रकृति का ही प्रकोप हुआ ।।

    
                       Avantika Anil ✍️ humara apna ujda chaman