चलो चलते हैं शुकून की तलाश में, सब खुशियों में खिले हों, उस जुनून की तलाश में। घडी अपनी और वक्त भी हमारा हो, जहां दर्द भी अपनों का, और रक्त भी हमारा हो। जहां सपने हकीक़त से, मिलने को आतुर हों, जैसे नैना हमेशा,मिलने को व्याकुल हों। पर्वत की छावों से, राहें सुखद हों, जीने की हंसने की न कोई हद हो, बाहें फैलाएं न कोई सरहद हो। ©Anand Prakash Nautiyal #शुकून_की_तलाश_में#