उम्मीदों के दीप जलाये बैठे हैं गहन तिमिर में प्रीत निभाये बैठे हैं गैरों से क्या आस करें अपनेपन की अपनों से ही यहाँ सताये बैठे हैं - Rahul Kavi Umido ke deep jlaaye..