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White कविता का शीर्षक – सफ़र मेरा अकेला हैं "तन्

White कविता का शीर्षक – सफ़र मेरा अकेला हैं 

"तन्हाइयों का सफ़र मेरा अकेला है,
मैं तो अंधेरे में रहता हूँ,
चिराग भी जलते हैं बुझने के लिए,
मैं तो बस खामोशी सहता हूँ।
आवाज़ें आती हैं दिल के शहर से,
पर मैं खामोशी को ओढ़े खड़ा हूँ,
जो सपने संजोए थे आँखों में कभी,
अब उनकी राख से खेला हूँ।

सांसें तो चलती हैं लहरों की तरह,
पर दिल किसी साहिल पे ठहरा नहीं,
हर मोड़ पे रोशन थे रास्ते मगर,
कहीं कोई अपना मिला ही नहीं।

रातों से पूछो मेरी तन्हाइयों का दर्द,
चाँद भी मुझसे कतराने लगा,
जो अश्क थे मेरे, वो सूख गए,
अब तो बादल भी बरसाने लगा।

शहर की रौनक से डर सा लगता है,
सन्नाटों से अब गहरा नाता है,
जो दर्द मेरे दिल में दफ्न पड़ा है,
वो किसे सुनाऊं, कौन अपना लगता है?

चलो फिर से अंधेरे को अपना बना लूँ,
चाँदनी से भी अब डर सा लगता है,
जो उम्मीद बची थी किसी कोने में,
वो भी अब राख बनने लगी है।"

©tatya luciferin #Sad_Status  sad poetry
#tatyaluciferin 
#tatyakavi 
#TATYA 
#santoshtatya
White कविता का शीर्षक – सफ़र मेरा अकेला हैं 

"तन्हाइयों का सफ़र मेरा अकेला है,
मैं तो अंधेरे में रहता हूँ,
चिराग भी जलते हैं बुझने के लिए,
मैं तो बस खामोशी सहता हूँ।
आवाज़ें आती हैं दिल के शहर से,
पर मैं खामोशी को ओढ़े खड़ा हूँ,
जो सपने संजोए थे आँखों में कभी,
अब उनकी राख से खेला हूँ।

सांसें तो चलती हैं लहरों की तरह,
पर दिल किसी साहिल पे ठहरा नहीं,
हर मोड़ पे रोशन थे रास्ते मगर,
कहीं कोई अपना मिला ही नहीं।

रातों से पूछो मेरी तन्हाइयों का दर्द,
चाँद भी मुझसे कतराने लगा,
जो अश्क थे मेरे, वो सूख गए,
अब तो बादल भी बरसाने लगा।

शहर की रौनक से डर सा लगता है,
सन्नाटों से अब गहरा नाता है,
जो दर्द मेरे दिल में दफ्न पड़ा है,
वो किसे सुनाऊं, कौन अपना लगता है?

चलो फिर से अंधेरे को अपना बना लूँ,
चाँदनी से भी अब डर सा लगता है,
जो उम्मीद बची थी किसी कोने में,
वो भी अब राख बनने लगी है।"

©tatya luciferin #Sad_Status  sad poetry
#tatyaluciferin 
#tatyakavi 
#TATYA 
#santoshtatya