आज मैं बाल-बाल बच गया, अपने खूबसूरत अतीत के काले घेरे में जाने से।
जीवन में व्यस्तता इतनी हो गयी है कि खुद का ख़्याल रखने की भी फुर्सत नहीं। एक रात ही होती है, जब मैं फुर्सत में रहता हुँ। खाली समय और खाली दिमाग हो तो ख़यालों की बारिश होना लाज़मी है। कल रात भी कुछ यूँ ही हुआ। कल भी किसी की याद मुझे देर रात तक सताती रही।
आखिर भाग दौड़ भरी ज़िंदगी से आज एक दिन की छुट्टी ले ली मैंने। इत्तफ़ाक से किसी काम से घर से निकलना भी हो गया। चलते चलते कुछ पुराने दिन और पुरानी राहें याद आने लगीं। अचानक मेरे कदम उन राहों से होते हुए उसके घर की ओर मुड़ने लगे।
ऐसा लग रहा था जैसे अपने कदमों से मैं अपना संतुलन खो चुका हुँ। जैसे-तैसे अपने आप को संभालते हुए मैं कुछ देर रुका। उस वक़्त मानों मेरा दिल मेरे कदमों से हाथ जोड़ कर विनती कर रहा था कि फिर से उस रास्ते मत जाओ, कि फिर से तुम उस अतीत की राह पर मत चलो। आँख बंद करके जब कुछ देर मैंने पुराने पलों के बारे में सोचा तो फिर कुछ यूँ हुआ कि कदमों ने दिल की सुन ही ली, और मैं टहलता-टहलता घर लौट आया।
पर आज फिर एक बार मैं अपने खूबसूरत अतीत के काले घेरे में जाने से बच गया।
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