कभी मेरे आशु न टपके थे, इन बेजान सी राहों में, सोचा क्यों न मैं रह लूं, तेरी दिल के पनाहो में, सोचा था भर लेगी तूं भी, मुझे अपनी ही बाहों में, कभी गुजरेंगे ये दिन भी, तेरी जुल्फों की छांवो में, मिलकर गुजरेगे हम दोनों, कभी इन वे सर्द हवाओं में, मगर बस कांटे ही डाले, अक्सर मेरी ही राहो में, जब जिन्दगी में हो उल्फत, कटेंगे दिन कहा अब छावो में, सुन रखा था मैंने भी कभी, बेवफ़ाई का न मर्ज है ना इलाज है, रह जाओगे तुम बीच राहों में तन्हा, इससे उठने वाला दर्द बेहिसाब है। आशुतोष शुक्ल (उत्प्रेरक) ©ashutosh6665 #peace #poem #Poetry #poems #poetrycommunity