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अर्ज़ किया है -- "है मुश्किल साबित करना बेगुनाही ह

अर्ज़ किया है --
"है मुश्किल साबित करना बेगुनाही हर बार,
आंखो की गवाही पर कभी तो हो ऐतबार"

वक़्त से पहले किस तरह बड़ा हुआ
आइने को पता है ये आइने से पूछ लो,
किस तरह गुज़र रही है
तर्ज़ - ए - ज़िंदगी मेरी दुश्मनों से पूछ लो।
उसूल भूल कर कभी जिया नहीं
ज़िंदगी में कैद उन ख्वाहिशों से पूछ लो,
जो आ गया ज़ुबान पर वो कह दिया
जो रह गया अब मेरी धड़कनों से पूछ लो।
क्या बिसात मेरी जो लबकुशाई कर सकू
जज़्बा - ए - सिकंद्री सिकंद्रों से पूछ लो,
पत्थरों के शहर में सच कहूं
किस तरह कितने घर उजड़ गए उन हादसों से पूछ लो।

अकेला रह गया समंदर के बीच में
कितने लोग थे साथ ज़रा साहिलो से पूछ लो,
मंजिले कितनों को मिली पता नहीं
उस ओर चल रहे काफिलों से पूछ लो।
अब तो गुल भी खारों से चुभते है ऐसी
ज़िंदगी कैसे गुजारे कोई,
गम का बेतहाशा अंधेरा यहा 
खुशियों का एक चिराग अब रौशन करे कोई।।

©Rahul Roy 'Dev' #poetry #shayri #begunahi #zindagi

#moonlight
अर्ज़ किया है --
"है मुश्किल साबित करना बेगुनाही हर बार,
आंखो की गवाही पर कभी तो हो ऐतबार"

वक़्त से पहले किस तरह बड़ा हुआ
आइने को पता है ये आइने से पूछ लो,
किस तरह गुज़र रही है
तर्ज़ - ए - ज़िंदगी मेरी दुश्मनों से पूछ लो।
उसूल भूल कर कभी जिया नहीं
ज़िंदगी में कैद उन ख्वाहिशों से पूछ लो,
जो आ गया ज़ुबान पर वो कह दिया
जो रह गया अब मेरी धड़कनों से पूछ लो।
क्या बिसात मेरी जो लबकुशाई कर सकू
जज़्बा - ए - सिकंद्री सिकंद्रों से पूछ लो,
पत्थरों के शहर में सच कहूं
किस तरह कितने घर उजड़ गए उन हादसों से पूछ लो।

अकेला रह गया समंदर के बीच में
कितने लोग थे साथ ज़रा साहिलो से पूछ लो,
मंजिले कितनों को मिली पता नहीं
उस ओर चल रहे काफिलों से पूछ लो।
अब तो गुल भी खारों से चुभते है ऐसी
ज़िंदगी कैसे गुजारे कोई,
गम का बेतहाशा अंधेरा यहा 
खुशियों का एक चिराग अब रौशन करे कोई।।

©Rahul Roy 'Dev' #poetry #shayri #begunahi #zindagi

#moonlight