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अपनों से वफ़ा की उम्मीद कर बैठा! हां उस बेवफ़ा से मै

अपनों से वफ़ा की उम्मीद कर बैठा!
हां उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा।
उनके झूठे कसमें वादों का ऐतबार कर बैठा!
हां उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा।
नादान था, ना समझ था,
उनकी नज़ाकत हरक़तों को शरारत समझ बैठा!
मुख़्तसर मुलाकातों को जिंदगानी समझ बैठा!
शायद अबतक बेख़बर था उनके दिल की अहसासों से मैं,
इसलिए उस खूबसूरत चेहरे को, खूबसूरत दिल समझ बैठा!
उस पत्थर दिल को मोम समझ बैठा!
उनकी तबस्सुम को ज़िन्दगी समझ बैठा!
हां! उस बेवफा से मैं प्यार कर बैठ।
हर पल हर लम्हा उनका इंतेज़ार कर बैठा!
उनके दिए वक़्त का दीदार कर बैठा!
मैं ढूँढता था खुद को उनकी आंखों में,
न जाने क्यों और न जाने क्यों,
ख़ुद को उनकी जान समझ बैठा!
हां! उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा!
अब करता भी तो मैं क्या करता!!!
बातों-बातों में हीं इज़हार कर बैठा,
ईबादत-ए-इश्क़ बेशूमार कर बैठा!
हां! उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा!
अपनों से वफ़ा की उम्मीद कर बैठा!
हां उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा। अपनों से वफ़ा की उम्मीद कर बैठा!
हां उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा।
उनके झूठे कसमें वादों का ऐतबार कर बैठा!
हां उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा।
नादान था, ना समझ था,
उनकी नज़ाकत हरक़तों को शरारत समझ बैठा!
मुख़्तसर मुलाकातों को जिंदगानी समझ बैठा!
शायद अबतक बेख़बर था उनके दिल की अहसासों से
अपनों से वफ़ा की उम्मीद कर बैठा!
हां उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा।
उनके झूठे कसमें वादों का ऐतबार कर बैठा!
हां उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा।
नादान था, ना समझ था,
उनकी नज़ाकत हरक़तों को शरारत समझ बैठा!
मुख़्तसर मुलाकातों को जिंदगानी समझ बैठा!
शायद अबतक बेख़बर था उनके दिल की अहसासों से मैं,
इसलिए उस खूबसूरत चेहरे को, खूबसूरत दिल समझ बैठा!
उस पत्थर दिल को मोम समझ बैठा!
उनकी तबस्सुम को ज़िन्दगी समझ बैठा!
हां! उस बेवफा से मैं प्यार कर बैठ।
हर पल हर लम्हा उनका इंतेज़ार कर बैठा!
उनके दिए वक़्त का दीदार कर बैठा!
मैं ढूँढता था खुद को उनकी आंखों में,
न जाने क्यों और न जाने क्यों,
ख़ुद को उनकी जान समझ बैठा!
हां! उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा!
अब करता भी तो मैं क्या करता!!!
बातों-बातों में हीं इज़हार कर बैठा,
ईबादत-ए-इश्क़ बेशूमार कर बैठा!
हां! उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा!
अपनों से वफ़ा की उम्मीद कर बैठा!
हां उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा। अपनों से वफ़ा की उम्मीद कर बैठा!
हां उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा।
उनके झूठे कसमें वादों का ऐतबार कर बैठा!
हां उस बेवफ़ा से मैं प्यार कर बैठा।
नादान था, ना समझ था,
उनकी नज़ाकत हरक़तों को शरारत समझ बैठा!
मुख़्तसर मुलाकातों को जिंदगानी समझ बैठा!
शायद अबतक बेख़बर था उनके दिल की अहसासों से