नज़ाकत न पूछिए मेरे यार कि मुझसे वो शर्माए तो चाँद छुप जाए वो मुस्काये तो फूल खिल जाए वो बोले तो लगे दूर कहीं वादी में कोई पसंद की मेरी धुन बजाए उसकी आँखों की चमक जैसे सियाह रात में जुगनू टिम-टिमाए खोले जब भी वो बाल अपना भरी धूप को भी जैसे छाँव मिल जाए उसकी छुअन मेरे जिस्म में जैसे दिसंबर की सर्दी में कोई आग लगाए उसके वजूद की खुशबु उससे दूर रहकर भी आखिर क्यों हर वक़्त मेरे वजूद से आए ©Simab Eak Ehsaas #simabeakehsaas #PoetryOfSimab #najakat