देखता हूं दीवार की उस तरफ तो मुझे कुछ सोचने समझने का मन करता है एक खिलखिलाता बचपन। बेपरवाह नजर आता है। स्कूल का वक़्त भी। अजीब सी उमंग भर जाता है। लड़कपन भी कमाल था। हल्की उगती मुच्छे। बड़े होने का एहसास दिलाती है। प्यार मुहब्बत भी समझ आता है। कॉलेज में दाखिल होने का मजा अलग है। कुछ कर गुजरने की इच्छा। किसी पर निसार होने का जनून। फिर नौकरी की तलाश। घरवालों के शादी का दबाव। असल ज़िंदगी का एहसास दिलाता है शादी के बाद नए दौर की शुरुवात। भागदौड़ की जिंदगी रोटी का जुगाड। घरवालों की उम्मीद। बच्चो की फरमाइश। पत्नी की चाहत। यही ज़िन्दगी बन गई। ढलती उम्र बच्चो की फ़िक्र। सफेद बाल नजरो की ऐनक। बहुत कुछ बयां कर जाती है। बच्चे अपने पैरो पर खड़े हो जाते हैं पेंशन शुरू हो जाती है साथी साथ छोड़ने लगा जाते हैं धीरे धीरे अकेलेपन का एहसास होता है समझ आता ज़िन्दगी एक चक्र है सब उलझ कर रह जाते हैं जो जी लेता है वहीं खुश रह जाता है ज़िन्दगी फिर नहीं आती। सिर्फ मलाल रह जाता है #अनुराज #dewar