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गज़ल :- जवाज़-ए-हिज्र कुछ यूँ तुमसे मोहब्बत की उम

गज़ल :- जवाज़-ए-हिज्र

कुछ यूँ तुमसे मोहब्बत की उम्मीद लगाकर बैठे हैं
सवेरा हो चुका हैं और हम चिराग जलाकर बैठे हैं।

जब महसूस हो जाये तुमको सदाकत मेरे इश्क की,
गर हो सके तो लौट आना हम राहें सजाकर बैठे हैं।

मैं ही नहीं हकदार अकेला, दर्द-ए-दिल तुमको भी हैं,
तुम ही तो मर्ज की हो दवा, हम चैन गवाँकर बैठे हैं।

आने में तकलीफ़ कोई, हो ना तुमको मुझ तलक,
आब-ए-चश्म से धोकर, कई गुल खिलाकर बैठे हैं।

अब जवाज-ए-हिज्र में तकलीफ़ कोई आएगी नहीं,
चाँद और तारों को हम, बिस्तर में सुलाकर बैठे हैं। #gif #Mypoetry149 
#Reconciliation
#पुनर्मिलन
#जवाज़एहिज्र

#सदाकत :- सच्चाई
#मर्ज :- रोग, बिमारी
#आब-ए-चश्म :- आँसू
गज़ल :- जवाज़-ए-हिज्र

कुछ यूँ तुमसे मोहब्बत की उम्मीद लगाकर बैठे हैं
सवेरा हो चुका हैं और हम चिराग जलाकर बैठे हैं।

जब महसूस हो जाये तुमको सदाकत मेरे इश्क की,
गर हो सके तो लौट आना हम राहें सजाकर बैठे हैं।

मैं ही नहीं हकदार अकेला, दर्द-ए-दिल तुमको भी हैं,
तुम ही तो मर्ज की हो दवा, हम चैन गवाँकर बैठे हैं।

आने में तकलीफ़ कोई, हो ना तुमको मुझ तलक,
आब-ए-चश्म से धोकर, कई गुल खिलाकर बैठे हैं।

अब जवाज-ए-हिज्र में तकलीफ़ कोई आएगी नहीं,
चाँद और तारों को हम, बिस्तर में सुलाकर बैठे हैं। #gif #Mypoetry149 
#Reconciliation
#पुनर्मिलन
#जवाज़एहिज्र

#सदाकत :- सच्चाई
#मर्ज :- रोग, बिमारी
#आब-ए-चश्म :- आँसू