मुझे अपनो की खुदगर्जी ने बर्बाद किया वक़्त की मार को क्या दोष देना मैं बैठा रहा किनारे पे और कस्ती वफ़ा की डूब गई इसमे नदी की धार को क्या दोष देना कम्फर्ज़ी का हम क्या बया करे अपने मुँह से किसी के व्यवहार को क्या दोष देना मेरे ही मकान की छत कमज़ोर थी बेशक शहर में ही रही बारिश को क्या दोष देना हर लम्हा तरसे है एक तेरे साथ को इसमे अपनी किस्मत को क्या दोष देना आज हम बहुत बुरे हो गए तेरी नज़र में इसमे अपनी मोहब्बत को क्या दोष देना #kya_dos_dena#Nojotonews