कविता : अपने अनुसार बनाना पड़ता है !! समझे कोई विस्तार नहीं , तब सार बनाना पड़ता है ! जब बदलेगी दुनियां , अपने अनुसार बनाना पड़ता है !! सुंदर वृक्षों से हरी - भरी , थी धरा तुम्हें मालूम नहीं ! पंछी गाते - मुस्काते थे , अब कहीं भी ऐसी धूम नहीं !! कुछ करने से पहले , उसका आधार बनाना पड़ता है ! जब बदलेगी दुनियां , अपने अनुसार बनाना पड़ता है !! शीतल जल था, नदियां पावन , तब मधुर हवा भी गाती थी ! है बने जहां पर भवन , वहां पर फसल कभी लहराती थी !! रुक जाती है गति नदियों की , तब धार बनाना पड़ता है ! जब बदलेगी दुनियां , अपने अनुसार बनाना पड़ता है !! जनसंख्या तक तो ठीक,मगर अब जनसंख्या विस्फोट किया ! पहले था मूल्य मगर मुझको , अब जैसे जाली नोट किया !! तम को कम करके तेजोमय , संसार बनाना पड़ता है ! जब बदलेगी दुनियां , अपने अनुसार बनाना पड़ता है !! हो गई अति अब रुक जाओ , वरना इतिहास नहीं होगा ! पढ़ जिसे गर्व महसूस करें , कुछ ऐसा खास नहीं होगा !! खुद को न खुदा समझ पाओ , अवतार बनाना पड़ता है ! जब बदलेगी दुनिया , अपने अनुसार बनाना पड़ता है !! #Earth_Day_2020 #prathvi #earthday धार को प्रमाण यही तुलसी, जो फरा सो झरा सो बरा सो बताना,, वसुधैव कुटुंबम्,