चल फिर उठ खडा हो तू, यूं अपनें मन को उदास न कर। मिलेगी मंजिल अवश्य ही तुझकों, सच्चे मन से प्रयास तो कर।। बहती नदियों की धारा क्या सहज ही रास्ता पाती है। स्वयं ही अपना मार्ग बना सागर से मिल जाती हैं।। श्रम की भट्टी मे कर्म का लोहा, पिघलाकर हथियार तो कर। लक्ष्य बना मछली की आंख, अर्जुन सा कठिन प्रहार तो कर।। कायर हैं जो आश्रय लेते, अपनें हाथों की लकीरों का। मेहनत ही सच्चा भूषण हैं, कर्मशील गंभीरों का।। मात्र सफलता लक्ष्य है जिसका, वो अबोंध अज्ञानी हैं। कर्म से अपनें निपुण बनें, तो सफलता उसकी अनुगामी हैं।। संयम और धैर्य को साध के तू, अपनी सुबुद्धि का विकास तो कर। मिलेगी सफलता अवश्य ही तुझको, सच्चे मन से प्रयास तो कर।। अविरल विपिन सकारात्मकता से सफलता तक