जला जाता तपिश में आग का सहरा रहा हूं मै, नदी हो ज़िन्दगी बहती मगर ठहरा रहा हूं मै। चले जाना छुड़ा कर हाथ का तेरा बिना बोले, दिखा दे आंख कर चुगली,बसा गहरा रहा हूं मै। पुराना गीत तन्हाई,उदासी का सबब तेरा, दिलों में आज भी गहरेे,कहीं उतरा रहा हूं मै। सफर में मंजिले किस्मत,नहीं होती या खो जाती, वफ़ा ए इश्क़ जो होता,वहीं सजदा रहा हूं मैं। बड़ी कर आंख ना घूरो,जरा ये जान सच तो ले, तेरी आंखे जो चमकाए,वहीं कजरा रहा हूं मै। हज़ारों बंदिशे लांघे,जो मिलने तुम चले आते लगा पहला मिलन अपना,बहुत घबरा रहा हूं मै। संजीव निगम "अनाम" #सहरा