वतनपरस्ती ********* हवा भी रुख बदल लेगी, ये तूफां सर झुकाएगा वतन से इश्क़ है जिनको वही तो रंग लाएगा। हिना ना रंग की चाहत तिरंगे में है दिल रंगा मुझे खंजर दिखाया तो वो जयचंद मिट ही जाएगा। न कोई गीत भाती है ना ही कव्वाल हूँ कोई झूमता हूँ जिसे सुनकर कि कोई "वंदे" गाएगा। यही माटी है घर मेरा मुझे तू क्या सजाएगा जो टीका माथे पे करलूँ तू रूह तक कांप जाएगा। देखो,दीवानगी मेरी मैं भारत खून से लिखता जिसके रग में हो गद्दारी वो जण-गण-मन क्या गाएगा? दिलीप कुमार खाँ "अनपढ़" #India वतनपरस्ती