क्यों भाता नहीं तू किसी ओर की "निगाहों" में मेरी आँखों के सामने तुम्हें मैं ताउम्र रखना चाहती हूँ तू चाहे खफा भी हो जाए हमसे...तो गम नहीं बस वो "लूका-छिपी" वाला खेल में ताउम्र खेलना चाहती हूँ क्यों भाता नहीं तू किसी ओर की "निगाहों" में मेरी आँखों के सामने तुम्हें मैं ताउम्र रखना चाहती हूँ तू चाहे खफा भी हो जाए हमसे...तो गम नहीं बस वो "लूका-छिपी" वाला खेल में ताउम्र खेलना चाहती हूँ