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दर्द गूंजता रहता है , खामोशी की दीवारों में । जब ल

दर्द गूंजता रहता है , खामोशी की दीवारों में । जब लूटी अस्मिता नारी की ,रोशन से बाजारों में । जब मैं सीमाओं में वह ,स्वच्छंद भ्रमण ना कर पाये । बोलो कैसे फिर भारत का देश कहाए है ? सबसे लड़ती रहती है ,वह खुद को हाँसिल करने मे । बस मोमबत्तियां जलती रहती हैं । बेमतलब के धरने में ,जब रातों के सन्नाटे में भी चीख चीख कर मर जाए । बोलो कैसे फिर भारत 
को देश कहाए है ॥
कवि भागीरथ

©BHAGEERATH SAINI bhageerath
#Stoprape
दर्द गूंजता रहता है , खामोशी की दीवारों में । जब लूटी अस्मिता नारी की ,रोशन से बाजारों में । जब मैं सीमाओं में वह ,स्वच्छंद भ्रमण ना कर पाये । बोलो कैसे फिर भारत का देश कहाए है ? सबसे लड़ती रहती है ,वह खुद को हाँसिल करने मे । बस मोमबत्तियां जलती रहती हैं । बेमतलब के धरने में ,जब रातों के सन्नाटे में भी चीख चीख कर मर जाए । बोलो कैसे फिर भारत 
को देश कहाए है ॥
कवि भागीरथ

©BHAGEERATH SAINI bhageerath
#Stoprape