27 विरह काल में प्रियजन की कोई वस्तु प्रति प्रिति को करती उद्दीप्त, तीव्र हीं करे और विरह वेदना, कदापि नहीं करती तृप्त। अन्यमनस्क हो जाता प्रेमी तत्पश्चात पाकर खोई चिज, अनुस्मरण कर कभी बेसुध होता व कभी जाता खीज। उदयन का भी वहीं हाल हुआ पाकर घोषवती नामक वीणा, जघनस्थल मध्य सुलाकर बजाती थी आर्या जिसे लगाकर अपना सीना। ©RAVINANDAN Tiwari #स्वप्नवासवदत्ता #कविता #Nojotohindi #Nojoto #nojotowriters #NojotoWriter