रचना नंबर– 4 “इश्क़ या फ़रेब” अनुशीर्षक में मोहब्बत का इज़हार करने नहीं आता मालूम है हमें पर जज़्बात समझ ना सको इतने नादान तुम तो नहीं ये भी मालूम है हमें जिस्म से होने वाली मोहब्बत का इज़हार आसान है रूह से होने वाली मोहब्बत को समझने में उम्र गुजर जाती है लाख चाहा लिख दूँ दर्द अपना सारा कलम है कि तेरा फ़रेब लिखती नहीं हमारा गम से ताल्लुक बहुत पुराना है दर्द के आलम में वफ़ा का रंग दिखता गहरा है