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〰️〰️➖➖‼️➖➖〰️〰️ *‼ऋषि चिंतन‼* 〰️〰️➖➖‼️➖

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            *‼ऋषि चिंतन‼*
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*☝️--//पहले दो, पीछे पाओ//--*
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👉यह प्रश्न विचारणीय है कि महापुरुष अपने पास आने वालों से सदैव याचना ही क्यों करता है ? *मनन के बाद मेरी निश्चित धारणा हो गई कि "त्याग" से बढ़कर "प्रत्यक्ष" और तुरंत फलदायी और कोई धर्म नहीं है ।* त्याग की कसौटी आदमी के खोटे-खरे रूप को दुनियाँ के सामने उपस्थित करती है । *मन में जमे हुए कुसंस्कारों और विकारों के बोझ को हल्का करने के लिए "त्याग" से बढ़कर अन्य साधन हो नहीं सकता ।*
👉 आप दुनियाँ से कुछ प्राप्त करना चाहते हैं, विद्या, बुद्धि संपादित करना चाहते हैं, तो *"त्याग" कीजिए ।* गाँठ में से कुछ खोलिए । ये चीजें बड़ी महँगी हैं  । कोई नियामत लूट के माल की तरह मुफ्त नहीं मिलती । *दीजिए, आपके पास पैसा, रोटी, विद्या, श्रद्धा, सदाचार, भक्ति, प्रेम, समय, शरीर जो कुछ हो, मुक्त हस्त होकर दुनियाँ को दीजिए, बदले में आपको बहुत मिलेगा ।* 
👉  गौतमबुद्ध ने  *राजसिंहासन का त्याग किया,* गांधी ने *अपनी बैरिस्टरी छोड़ी,* उन्होंने जो छोड़ा था, उससे अधिक पाया । विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर अपनी एक कविता में कहते हैं - *"उसने हाथ पसारकर मुझसे कुछ माँगा । मैंने अपनी झोली में से अन्न का एक छोटा सा दाना उसे दे दिया । शाम को मैंने देखा कि झोली में उतना ही छोटा एक सोने का  दाना मौजूद था । मैं फुट-फूटकर रोया कि क्यों न मैंने अपना सर्वस्व दे डाला, जिससे मैं भिखारी से राजा बन जाता ।*
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*अखण्ड ज्योति,मार्च १९४० पृष्ठ ९*
   *🍃पं.श्रीराम शर्मा आचार्य🍃*
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©Devendra kumar ऋषि चिंतन
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            *‼ऋषि चिंतन‼*
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*☝️--//पहले दो, पीछे पाओ//--*
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👉यह प्रश्न विचारणीय है कि महापुरुष अपने पास आने वालों से सदैव याचना ही क्यों करता है ? *मनन के बाद मेरी निश्चित धारणा हो गई कि "त्याग" से बढ़कर "प्रत्यक्ष" और तुरंत फलदायी और कोई धर्म नहीं है ।* त्याग की कसौटी आदमी के खोटे-खरे रूप को दुनियाँ के सामने उपस्थित करती है । *मन में जमे हुए कुसंस्कारों और विकारों के बोझ को हल्का करने के लिए "त्याग" से बढ़कर अन्य साधन हो नहीं सकता ।*
👉 आप दुनियाँ से कुछ प्राप्त करना चाहते हैं, विद्या, बुद्धि संपादित करना चाहते हैं, तो *"त्याग" कीजिए ।* गाँठ में से कुछ खोलिए । ये चीजें बड़ी महँगी हैं  । कोई नियामत लूट के माल की तरह मुफ्त नहीं मिलती । *दीजिए, आपके पास पैसा, रोटी, विद्या, श्रद्धा, सदाचार, भक्ति, प्रेम, समय, शरीर जो कुछ हो, मुक्त हस्त होकर दुनियाँ को दीजिए, बदले में आपको बहुत मिलेगा ।* 
👉  गौतमबुद्ध ने  *राजसिंहासन का त्याग किया,* गांधी ने *अपनी बैरिस्टरी छोड़ी,* उन्होंने जो छोड़ा था, उससे अधिक पाया । विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर अपनी एक कविता में कहते हैं - *"उसने हाथ पसारकर मुझसे कुछ माँगा । मैंने अपनी झोली में से अन्न का एक छोटा सा दाना उसे दे दिया । शाम को मैंने देखा कि झोली में उतना ही छोटा एक सोने का  दाना मौजूद था । मैं फुट-फूटकर रोया कि क्यों न मैंने अपना सर्वस्व दे डाला, जिससे मैं भिखारी से राजा बन जाता ।*
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*अखण्ड ज्योति,मार्च १९४० पृष्ठ ९*
   *🍃पं.श्रीराम शर्मा आचार्य🍃*
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©Devendra kumar ऋषि चिंतन