त्रिकुटि की भृकुटि तनी और तन कई - हुए कलेवा काल के,अकाल काल कवलित, किसका है यह दोष, महाकाल की छत्रच्छाया में, कौन हुआ वह रुष्ट,रोष जैसे किया प्रदर्शित, है मंथन की बात,मनन - चिंतन-अध्ययन हो, नयन ज्ञान का खुले मनुज का, तुम त्रिनयन हो, हे महादेव!मत कोप दिखाओ, कम थे क्या दो-तीन वर्ष के कोप वे ? रोप दिया आरोप सहज जीवन न, भुले न कांड-'रोप वे'। ©BANDHETIYA OFFICIAL त्रिकुटी की भृकुटी तनी ! #Pinnacle