अजीब तल्ख़ी आज के मुआशिरे मे हैं क़ातिल आज़ाद, बेगुनाह कटघरे में है मैं तन्ज़ भी करूँगा तहज़ीब के साथ मेरी शायरी इक अदब के दायरे मे है ~अब्दुल हादी अजीब तल्ख़ी आज के मुआशिरे मे हैं क़ातिल आज़ाद, बेगुनाह कटघरे में है मैं तन्ज़ भी करूँगा तहज़ीब के साथ मेरी शायरी इक अदब के दायरे मे है ~अब्दुल हादी