दिन के उजाले में जिस बात से ख़ौफ़ज़दा रहा करता हूँ अक्सर वही बात ख्यालबनकर रात में डराती है मुझे... . यूं तो भागना गलत ही है पर उस अतीत का बेफिजूल डटकर सामना करना कहां की समझदारी है जो सिर्फ और सिर्फ आंखे भिगोता हो। अक्सर किसी से लगाव हो जाता है और फिर वही लगाव अतीत बनकर आंखे निचोड़ता है। . रात सोते वक्त मैं खुशनुमा वाक़िये सोचा करता हूं और कुछ लोग जिनसे मुझे इश्क है उन्हें भी। पर गहरी नींद में अपने डर के आगे दौड़ता रहता हूं । सोचता हूँ ये कैसा डर है या अभी भी कोई नकाब उतरना बाकी है या फिर तेज तालियों की गड़गड़ाहट के साथ परदा गिरेगा और कोई कहेगा, चलो नाटक खत्म हो गया। . इन्हीं सब में जब सुबह होती है तो बड़ा ही इत्मिनान हुआ करता है कि वो डर जो था बस ख्वाब में ही करीब आया था , पर भले ही ख्वाब में आया हो पर डर तो था, अभी भी ये डर है कि कहीं रात का ख्वाब सच ना हो जाये !!! ©asma #asma7writes