काशी ! जहां एक ओर घनी घटाओं तले घाटों पर बैठे युगल जोड़े मन में राग जागृत करते है तो दुसरी ओर मणिकर्णिका में जलते हुए राजा रंक फकीरों के देह मन में सहज विराग उत्पन्न करतें है . जहाँ साक्षात् विश्वास स्वरूप शिव हैं श्रद्धा स्वरूपा माँ अन्नपूर्णा हैं . इसलिए तो इसी काशी में बैठकर गोस्वामी जी ने रामचरितमानस के मंगलाचरण में हीं कह डाला "भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ " ज्ञान ,वैराग्य तथा भक्ति की धारा से सिंचित काशी कठोर से कठोर हृदय को द्रवित करने में सक्षम है । राग , अनुराग , विराग का समन्वय देखना हो तो काशी आ जाओ ©परम् वै बनारसी #WorldAsteroidDay