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तुम्हारी याद में खुद को वब बिसारे बैठे हैं तुम्हार

तुम्हारी याद में खुद को वब बिसारे बैठे हैं तुम्हारी
 मेज पर टंगरी पसारे बैठे हैं गया था मिलने मैं पार्क
 में मिस से वहां पर देखा वालीद हमारे बैठे हैं जरा
 सा रूप का दर्शन तो दो आँखों को बहुत दिनों से
 यह भूखे बेचारे बैठे हैं ये काले बाल और इनमें गुथे
 हुए मोती ये राजहंस क्या जमुना किनारे बैठे हैं गया जो रात बिता घर तो बोल उठे अब्बा इधर तो
 आओ हम जूते उतारे बैठे हैं... -कान्तानाथ पांडेय

©VED PRAKASH 73 #उस्तरा
तुम्हारी याद में खुद को वब बिसारे बैठे हैं तुम्हारी
 मेज पर टंगरी पसारे बैठे हैं गया था मिलने मैं पार्क
 में मिस से वहां पर देखा वालीद हमारे बैठे हैं जरा
 सा रूप का दर्शन तो दो आँखों को बहुत दिनों से
 यह भूखे बेचारे बैठे हैं ये काले बाल और इनमें गुथे
 हुए मोती ये राजहंस क्या जमुना किनारे बैठे हैं गया जो रात बिता घर तो बोल उठे अब्बा इधर तो
 आओ हम जूते उतारे बैठे हैं... -कान्तानाथ पांडेय

©VED PRAKASH 73 #उस्तरा
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VED PRAKASH 73

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