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रंग रंगीली चुनर तेरी लहरों सी लहराये जिन गलियों से

रंग रंगीली चुनर तेरी लहरों सी लहराये
जिन गलियों से तू गुजरे, उधर कइयों का चैन जाये।। 

तेरे बदन की खुशबू से हवा में मादकता आये
मैं बैठूं मेरी मस्ती में, तू मेरा ईमान डिगाये
नाक तेरे बदन की खुशबू से मुझको लूटे जाये
नाक अब नाक ना रहा ,यह तेरा दास बनता जाये।

मेरी आंखों के दो झरोखों से दिल में उतरी जाये
शामत तो तब आये, जब तू जल्फें झटकाये
लगता तू जुल्फें नहीं, मेरे दिल को झटके लगाये
धक्क सा मैं रह जाता हूं, जब तू गायब हो जाये। 

सावन की‌ हरियाली में तू धीरे से गाये 
तेरी मधुर वाणी बसंत की याद दिलाये 
बन पपीहा मैं पीछे उड़ूं ,जरा‌ लाज ना‌ आये
तेरी लाल चुनरी मुझे , 'बुल फाइटिंग' का 'बुल' बनाये। 

घूंघरू तेरी पायल के, कानों में राग जगाये
ज्यों ज्यों पैरों की आहट तेज हो ,
त्यों त्यों कान मुझे चिढाये 
संगीत पर जो मोहित ना हो,
उसका दिल कहां दिल कहलाये।।

©Mohan Sardarshahari
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