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पल्लव की डायरी फूल तो खिले है,महक नही देता है जिंद

पल्लव की डायरी
फूल तो खिले है,महक नही देता है
जिंदा पूरा शरीर खड़ा है,खोखला तन मन होता है
सुविधाओं के अजब तरीके भरमार 
मशीनों सा मानव जीवन लगता है
जड़ो से ना विकसित होते अब
कुकुरमुत्तों से खोखले लगते है
अशांति के बीजारोपण,वर्चस्व के संघर्ष लगते है
नदी पहाड़ सब,सौंदर्य प्रकृति के
मगर इनके दोहन से,आधुनिक बनते है
अपनी शक्ति संबल आत्मिक सुख सब भूले है
ज्ञान ध्यान करुणा दया सब मानव गुण है
लेकिन आज हम पत्थर से बन
आधुनिकता के आवरण  ओढ़े है
                                      प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"
  आधुनिकता के आवरण ओढ़े है
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