हर रोज़... हर रोज़ नया बनता हूं मैं , हर रोज़ थोड़ा बिगड़ कर । हर रोज़ ही संभल जाता हूं , हर रोज़ थोड़ा बिखर कर । हर रोज़ गलत हो जाता हूं , हर रोज़ सही मैं होकर । हर रोज़ नया बनता हूं मैं , हर रोज़ थोड़ा बिगड़ कर । हर रोज़ अकेला होता हूं , हर रोज़ सभी से घिरकर । हर रोज़ नया डर मुझमें है , हर रोज़ डरों से उभर कर । हर रोज़ नया बनता हूं मैं , हर रोज़ थोड़ा बिगड़ कर । -@परमार_साहब ©ParmarsahaB हर रोज़...@परमार_साहब #lost