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Life Like कोई मौसम हो भले लगते थे दिन कहाँ इतने कड

Life Like कोई मौसम हो भले लगते थे
दिन कहाँ इतने कड़े लगते थे

ख़ुश तो पहले भी नहीं थे लेकिन
यूँ न अंदर से बुझे लगते थे

रोज़ के देखे हुए मंज़र थे
फिर भी हर रोज़ नए लगते थे

उन दिनों घर से अजब रिश्ता था
सारे दरवाज़े गले लगते थे

रह समझती थीं अँधेरी गलियाँ
लोग पहचाने हुए लगते थे

झीलें पानी से भरी रहती थीं
सब के सब पेड़ हरे लगते थे

शहर थे ऊँची फ़सीलों वाले
डर ज़माने के परे लगते थे

बाँध रक्खा था ज़मीं ने 'अल्वी'
हम मगर फिर भी अड़े लगते थे

©@BeingAdilKhan #Lifelike Anshu writer Shalu R Ojha Neha@Nehit_Enola Chocolate
Life Like कोई मौसम हो भले लगते थे
दिन कहाँ इतने कड़े लगते थे

ख़ुश तो पहले भी नहीं थे लेकिन
यूँ न अंदर से बुझे लगते थे

रोज़ के देखे हुए मंज़र थे
फिर भी हर रोज़ नए लगते थे

उन दिनों घर से अजब रिश्ता था
सारे दरवाज़े गले लगते थे

रह समझती थीं अँधेरी गलियाँ
लोग पहचाने हुए लगते थे

झीलें पानी से भरी रहती थीं
सब के सब पेड़ हरे लगते थे

शहर थे ऊँची फ़सीलों वाले
डर ज़माने के परे लगते थे

बाँध रक्खा था ज़मीं ने 'अल्वी'
हम मगर फिर भी अड़े लगते थे

©@BeingAdilKhan #Lifelike Anshu writer Shalu R Ojha Neha@Nehit_Enola Chocolate