ये रात है स्याह समंदर सी अंबर में तारे कितने हैं मैं ढूंढ़ रहा तेरी परछाई को बेबस कैद में जुगनू जितने हैं क्या तुमने भी है इश्क किया लफ्ज़ दर लफ्ज़ मुझे तुम पढ़ते हो क्या तुम भी हो दिन-रात जले क्यूँ अपने अक्स से अब तुम डरते हो कौन रूकता है किसके बिना वक्त की रेत पर निशाँ सब मिटने है उड़ जाना पंछियों की आदत है हमें आसमाँ पे किस्से लिखने हैं... © abhishek trehan ♥️ Challenge-681 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।