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काजल की कोठरी से, कैसे धवल निकलते तुम? नवाबियत की

काजल की कोठरी से,
कैसे धवल निकलते तुम?
नवाबियत की धुंध में,
किसे नज़र आते तुम?
आलिंगनबद्ध तुम्हारे चाल चलते,
क्या समझते तुम?
जिल्दों के पन्ने पुकारें,
कहाँ हो तुम?

काजल की कोठरी से, कैसे धवल निकलते तुम? नवाबियत की धुंध में, किसे नज़र आते तुम? आलिंगनबद्ध तुम्हारे चाल चलते, क्या समझते तुम? जिल्दों के पन्ने पुकारें, कहाँ हो तुम? #कविता

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