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ग़ज़ल - 2122 2122 2212 2122 कित'ने नखरे कर'ती है अ

ग़ज़ल - 2122 2122 2212 2122
कित'ने नखरे कर'ती  है  अब ये लड़कियाँ  राज  घर  की
यार  मैं  फिर  देखता  हूँ  बस  खिड़कियाँ   राज  घर  की

तुम  कोई   यक  अप्सरा  हो  भटकी   हुई   कूचे   में  याँ
वरना  कब  दिख'ती है ग़ालिब ये तितलियाँ  राज  घर की

इक़   मुहब्बत   ही   हमारी    पह'चान    होने    लगी   है
मार  देगी  मुझ'को  चाहत,   मन-मर्जियाँ   राज   घर  की

दाग़    इस्तीफा   देके  आया   हूँ  मुआ'फ़ी   दो    मुझको
यार   कब   तक  सहन   करता  सर्दियाँ   राज   घर   की

चाँद   की     हूरे     सफ़ा'क़त   के  आइनें    पहनती    है 
हाए!  यक  वो   धूप  धोती   है   साड़ियाँ   राज   घर  की

देखो  हज़रत   सम्त   रंगों   का   आसमाँ  हो   चला फिर
क्या पतंगें है  हवा, क्या फिर  चरखियाँ  है  राज  घर  की

कोई  हम'से  भी  मुहब्बत करता  था  उस  सम्त  का  तब
मैं   यहाँ  ठुक'रा   रहा   हूँ  अब  अर्जियाँ   राज   घर  की

अप'ने  लफ़्ज़ों   को अना  कोई  भी  नही   देगा  अब  याँ
रे  ज़िया अब  ये  ग़ज़ल  है  बस  शोखियाँ  राज   घर  की

©Jiya Wajil khan #ग़ज़ल #जिया
ग़ज़ल - 2122 2122 2212 2122
कित'ने नखरे कर'ती  है  अब ये लड़कियाँ  राज  घर  की
यार  मैं  फिर  देखता  हूँ  बस  खिड़कियाँ   राज  घर  की

तुम  कोई   यक  अप्सरा  हो  भटकी   हुई   कूचे   में  याँ
वरना  कब  दिख'ती है ग़ालिब ये तितलियाँ  राज  घर की

इक़   मुहब्बत   ही   हमारी    पह'चान    होने    लगी   है
मार  देगी  मुझ'को  चाहत,   मन-मर्जियाँ   राज   घर  की

दाग़    इस्तीफा   देके  आया   हूँ  मुआ'फ़ी   दो    मुझको
यार   कब   तक  सहन   करता  सर्दियाँ   राज   घर   की

चाँद   की     हूरे     सफ़ा'क़त   के  आइनें    पहनती    है 
हाए!  यक  वो   धूप  धोती   है   साड़ियाँ   राज   घर  की

देखो  हज़रत   सम्त   रंगों   का   आसमाँ  हो   चला फिर
क्या पतंगें है  हवा, क्या फिर  चरखियाँ  है  राज  घर  की

कोई  हम'से  भी  मुहब्बत करता  था  उस  सम्त  का  तब
मैं   यहाँ  ठुक'रा   रहा   हूँ  अब  अर्जियाँ   राज   घर  की

अप'ने  लफ़्ज़ों   को अना  कोई  भी  नही   देगा  अब  याँ
रे  ज़िया अब  ये  ग़ज़ल  है  बस  शोखियाँ  राज   घर  की

©Jiya Wajil khan #ग़ज़ल #जिया