जिंदगी अब एक सफर सी लगने लगी .. कही गाव कि साधगी थी तो कही शहरोंकी भीड मिली.. कही वक्त लगा कच्ची सडकोंपे ,तो पक्के रास्तों पर तेजी मिली.. कभी अपनों ने तोड दिया था जब,गैरोंने अपनापन दिया था. किसी ने पत्थर समझ के फेक दिया था तो किसीने हिरा समझके तराशा था.. सूरत कहीपे बिक रही थी मानो . तो कही पे मेहनत से ही वजूद था.. कही पे काटों की राहे थी और कही पे फरिश्तोंका बसेरा था. धूप कहीपे तेज थी बहोत. कहीपे तूफान भी डरावना था. कहि पे पहचान मिली बहोत थी तो कही पे लोगोंको पहचानने मे भूल हूई थी.. जिंदगी का ये सफर जारी था और ईंतहान सबको देना था.. चट्टान बनके दरिया मे,लहरोंको अब वापस करना था.. ©nalini turare #WelcomLife