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कुछ तो हमने देखा हैं । जिन बागों के न हों माली वो

कुछ तो हमने देखा हैं ।

जिन बागों के न हों माली
वो बाग उजड़ते देखा है ।

कुछ कुछ कहते , कुछ कुछ करते 
मौन नहीं जिनके भीतर !
साध साध चिल्लाने पर उनके 
हालात बिगड़ते देखा है ।

पत्थर पत्थर घिस जातें हैं !
रोक टोक घिसें जब परिजन की !
हर पल ठोकर खाने वाले 
औलाद बिगड़ते देखा है ।

मन ईश्वर हो , तन मंदिर हो 
मानो हर जन को ऐसे ! 
आंख के बदले आंख ही वाले !
अंधी दुनिया देखा है ।

भीतर भीतर झांक के हमने 
बेहतर दुनियां को देखा है !
बंद आंख से ही सही 
चलो , कुछ तो हमने देखा है !

©Aditya kumar prasad
  मेरे अनकहे लफ्ज़

मेरे अनकहे लफ्ज़ #Shayari

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