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ये नसीब की नहीं, चाहत की बात है। तकदीर ने जमीन-आसम

ये नसीब की नहीं, चाहत की बात है।
तकदीर ने जमीन-आसमा को पास आने दिया तो क्या हुआ,
ये चाहत नहीं तो और क्या है जो बारीश बनकर एक दुसरे को मिलते है।
हर कोई अपनी चाहत को मार कर नसीब को यंहा कोसते है।
चाहत है तो मैलो दुर रेहने वाले भी अपने बन जाते है। चाहत है तो मैलो दुर रेहने वाले भी अपने बन जाते है।
ये नसीब की नहीं, चाहत की बात है।
तकदीर ने जमीन-आसमा को पास आने दिया तो क्या हुआ,
ये चाहत नहीं तो और क्या है जो बारीश बनकर एक दुसरे को मिलते है।
हर कोई अपनी चाहत को मार कर नसीब को यंहा कोसते है।
चाहत है तो मैलो दुर रेहने वाले भी अपने बन जाते है। चाहत है तो मैलो दुर रेहने वाले भी अपने बन जाते है।

चाहत है तो मैलो दुर रेहने वाले भी अपने बन जाते है।