गाँव वालों के साथ एक दिक्कत होती है। सिर्फ़ मेरे नहीं हर गाँव वालों के साथ यह दिक्कत है। उन्हें लगता है फ़ेसबुक पर कुछ जाने का मतलब है ग़लत प्रचारित होना। असल में इन्हें फ़ेसबुक की भी सही समझ नहीं होती है बुड्ढ़ों, बच्चों और ज़्यादातर औरतों को तो बस पता होता है कि इंटरनेट पर डाला गया है। जो दो चार मर्द फ़ेसबुक चलाना जानते हैं उन्हें तो यही समझ में नहीं आता कि लड़कियाँ फ़ेसबुक क्यों चलाती हैं।
ऐसे गाँव के सो कॉल्ड पढ़े लिखे मर्दों को जब कोई लड़की फ़ेसबुक चलाते दिख जाती है वह भी इस फ्रिक्वेंसी से कि उनके आसपास के सारे लड़के मिल कर उतना नहीं चलाते हैं तो वो अपने अपने घरों में उन लड़कियों की तस्वीरें दिखाते हैं और कहते हैं देखो फलनवा की बेटी इंटरनेट पर फ़ोटो डालती है। अब चाहे लड़की कितनी भी अच्छी युनिवर्सिटी से पढ़ी हो, कितना भी पढ़ी लिखी हो, कितनी भी जानकार हो, कितनी भी समझदार हो से मतलब नहीं रह जाता है मतलब रह जाता है कि फलनवा की "बेटी" इंटरनेट पर फोटो डालती है।
बाबू! फ़ोटो डालना बुरा नहीं होता है फ़ोटो का मिसयूज़ करना और बिना लड़की को बताए उसकी फ़ोटो सेव करना ग़लत होता है जो कि आपलोग धड़ल्ले से करते हो। और हाँ, लड़की फ़ेसबुक पर लिखती है इसका मतलब यह हुआ कि उसको उतनी जानकारी भी है तभी लिखती है तो थोड़ा सा अक़्लमंद बन जाईये और अक्सेप्ट कीजिए कि कुछ लड़कियाँ आपसे ज़्यादा समझदार भी हो सकती हैं👍