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वासना में लिप्त थी एक गंधर्व सी जो कामना। मदयुक्त

वासना में लिप्त थी एक गंधर्व सी जो कामना।
मदयुक्त होकर हर रहा था प्रेम की आराधना।।

ज्ञान और संस्कार का जो था बड़ा विद्वान वह।
बस राग ईर्ष्या काम ने की भंग उसकी साधना।

सामने अदना सा मानव जब खड़ा उसके हुआ!
तब हुआ आभास उसको ये भला क्यूँ कर हुआ?

श्रीराम जग की चेतना है संकल्प कर्तव्यों भरे।
सम्मान और हैं शक्ति सीते  दुष्टता उसको हरे।

प्रेम को पीड़ा में बदला ये दोष है सबसे बड़ा!
सर्वशक्तिमान युग का बिन शीश रण में था पड़ा।

हे राम कल की आस हो राष्ट्र नायक भी बनो।
उद्दंडता को फिर तुम्हारे बाण से सबकी हनो। वासना में लिप्त थी एक गंधर्व सी जो कामना।
मदयुक्त होकर हर रहा था प्रेम की आराधना।।

ज्ञान और संस्कार का जो था बड़ा विद्वान वह।
बस राग ईर्ष्या काम ने की भंग उसकी साधना।

सामने अदना सा मानव जब खड़ा उसके हुआ!
तब हुआ आभास उसको ये भला क्यूँ कर हुआ?
वासना में लिप्त थी एक गंधर्व सी जो कामना।
मदयुक्त होकर हर रहा था प्रेम की आराधना।।

ज्ञान और संस्कार का जो था बड़ा विद्वान वह।
बस राग ईर्ष्या काम ने की भंग उसकी साधना।

सामने अदना सा मानव जब खड़ा उसके हुआ!
तब हुआ आभास उसको ये भला क्यूँ कर हुआ?

श्रीराम जग की चेतना है संकल्प कर्तव्यों भरे।
सम्मान और हैं शक्ति सीते  दुष्टता उसको हरे।

प्रेम को पीड़ा में बदला ये दोष है सबसे बड़ा!
सर्वशक्तिमान युग का बिन शीश रण में था पड़ा।

हे राम कल की आस हो राष्ट्र नायक भी बनो।
उद्दंडता को फिर तुम्हारे बाण से सबकी हनो। वासना में लिप्त थी एक गंधर्व सी जो कामना।
मदयुक्त होकर हर रहा था प्रेम की आराधना।।

ज्ञान और संस्कार का जो था बड़ा विद्वान वह।
बस राग ईर्ष्या काम ने की भंग उसकी साधना।

सामने अदना सा मानव जब खड़ा उसके हुआ!
तब हुआ आभास उसको ये भला क्यूँ कर हुआ?