चाहे कितनी भी साहित्य के नियमों मे
रचना लिख दी जाए किन्तु यदि वह निष्पक्ष या सकारात्मक नहीं है तो वह विष ही होगी ।
ठीक उसी प्रकार कि
चाहे कितने भी मुल्यवान धातु के पात्र में विष रखदो वह विष ही रहेगा ।
रचनाऐं जल के प्रवाह कि तरह होती हैं जो विचारों के प्रवाह को निर्बाध प्रवाहित कर सकारात्मकता का प्रसार करती हैं जिससे आने वाली पीढ़ियों का सही पथप्रदर्शन संभव हो जिस तरह जल के प्रवाह का गुण हैं कि वह जिस ओर से होकर गुजरेगा जीवन का अंकुरण करेगा ।
लेखन कार्य चाहे गद्य हो या पद्य हो जिस रूप में भी हो वह मानव समाज और प्रकृति के अनुकूल व सकारात्मक हो । और सकारात्मकता दासता में कभी भी उपस्थित नहीं रहती हैं ।
सिर्फ शिकायत ही नहीं की जाए वरन् हल निकाला जाऐं ।
इसलिए यह टिप्पणी जरूरी हैं की #myvoice#arzhai#PoetryTutorial