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आज शाम इस ढ़लती हुई शाम में कुछ तो कशिश है, यू

आज शाम    इस ढ़लती हुई शाम में कुछ तो कशिश है,
 यूँ ही नहीं ये ढ़लते ढ़लते कुछ कह रही है, 
चलो सुनते हैं आज इस शाम को इसी के शब्दों में..
क्या कुछ कहती है ये आज शाम... 
 पिरोते हैं दिन भर के हर लम्हें को
 इस बीते वक़्त की सुनहरी डोर में,
ये ढ़लती हुई शाम सन्देश है, 
बीते हुए आज और आने वाले नए कल का,
 इसी शाम की मानिंद ढ़ल जाओगे एक दिन तुम भी 
और फ़क़त रह जाओगे अपनी सुनहरी यादों में
 पिरोए हुए लम्हो में कहीं न कहीं 
कुछ कही-अनकही बातों में और 
थोड़ा बहुत अपने परायों की यादों में..!
ये शाम... ढ़लती हुई ये आज शाम...!! 

शिप्रा पाण्डेय 'जागृति'

©Kshipra Pandey कुछ तो कशिश है इसमें..! 

#PoetInYou
आज शाम    इस ढ़लती हुई शाम में कुछ तो कशिश है,
 यूँ ही नहीं ये ढ़लते ढ़लते कुछ कह रही है, 
चलो सुनते हैं आज इस शाम को इसी के शब्दों में..
क्या कुछ कहती है ये आज शाम... 
 पिरोते हैं दिन भर के हर लम्हें को
 इस बीते वक़्त की सुनहरी डोर में,
ये ढ़लती हुई शाम सन्देश है, 
बीते हुए आज और आने वाले नए कल का,
 इसी शाम की मानिंद ढ़ल जाओगे एक दिन तुम भी 
और फ़क़त रह जाओगे अपनी सुनहरी यादों में
 पिरोए हुए लम्हो में कहीं न कहीं 
कुछ कही-अनकही बातों में और 
थोड़ा बहुत अपने परायों की यादों में..!
ये शाम... ढ़लती हुई ये आज शाम...!! 

शिप्रा पाण्डेय 'जागृति'

©Kshipra Pandey कुछ तो कशिश है इसमें..! 

#PoetInYou

कुछ तो कशिश है इसमें..! #PoetInYou