रही सदिखन बिसरल भटकल अहाँ छी हमर ख्वाब प्रिये देखु सदिखन नित नयन बसी अहाँ छी काजर सन लगाव प्रिये प्रेमक अहि बरखा मे देखु अहाँ छी स्नेहक बहाव प्रिये करी आरम्भ अहि महोत्सव केर अहाँ छी शब्दक भाव प्रिये काँट सँ भरल डंठल बनलहुँ अहाँ छी हमर गुलाब प्रिये ।।