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वो ज़िदंगी,जिदंगी ही क्या,जो ख़ामोशी से चुपचाप चली द

वो ज़िदंगी,जिदंगी ही क्या,जो ख़ामोशी से चुपचाप चली
दिल में बहुत शोर उठा,कतरा-कतरा जब रात ढ़ली

ये मत पूछो वक्त कैसे गुज़रता है,जैसे परिंदा कोई उड़ने को तरसता है
ना जाने कब तक बिठाये रखेगी,मेरी मँज़िलें होकर मुझसे नाराज़ चली

ना जाने क्यों खिंचा चला आता है,क्या उससे मेरा कोई पुराना नाता है
ऐ ज़िदंगी मुझे मुझसे थोड़ी फुर्सत दे दो,उसे मेरी,मुझे उसकी किस्मत दे दो

उसकी आँखों में ऐसे कुछ पिघलता है,जैसे पानी भी बहने के लिए मचलता है
दिल में क्या है किसी को ख़बर ही नहीं,होकर मायूस मेरी परछाई मेरे साथ-साथ चली

माना ज़िदंगी में एहतियात बहुत जरूरी है,हदों को पार करने की क्या मजबूरी है
उसने मुझमें इतनी कमियाँ गिना दी,पूरे इत्मीनान से फिर संग मेरे वो दिन-रात जली

सीख ली जिसने अदा ग़म में मुस्कुराने की,उसे क्या मिटा पाएँगी कोशिशें ज़माने की
है दस्तूर मगर यही ज़माने का,जिदंगी की शह में कभी जीत,कभी मात मिली...
© trehan abhishek


 #ज़िंदगी #ख़ामोशी #कतरा_कतरा #रात #yqdidi #yqaestheticthoughts #yqrestzone #manawoawaratha
वो ज़िदंगी,जिदंगी ही क्या,जो ख़ामोशी से चुपचाप चली
दिल में बहुत शोर उठा,कतरा-कतरा जब रात ढ़ली

ये मत पूछो वक्त कैसे गुज़रता है,जैसे परिंदा कोई उड़ने को तरसता है
ना जाने कब तक बिठाये रखेगी,मेरी मँज़िलें होकर मुझसे नाराज़ चली

ना जाने क्यों खिंचा चला आता है,क्या उससे मेरा कोई पुराना नाता है
ऐ ज़िदंगी मुझे मुझसे थोड़ी फुर्सत दे दो,उसे मेरी,मुझे उसकी किस्मत दे दो

उसकी आँखों में ऐसे कुछ पिघलता है,जैसे पानी भी बहने के लिए मचलता है
दिल में क्या है किसी को ख़बर ही नहीं,होकर मायूस मेरी परछाई मेरे साथ-साथ चली

माना ज़िदंगी में एहतियात बहुत जरूरी है,हदों को पार करने की क्या मजबूरी है
उसने मुझमें इतनी कमियाँ गिना दी,पूरे इत्मीनान से फिर संग मेरे वो दिन-रात जली

सीख ली जिसने अदा ग़म में मुस्कुराने की,उसे क्या मिटा पाएँगी कोशिशें ज़माने की
है दस्तूर मगर यही ज़माने का,जिदंगी की शह में कभी जीत,कभी मात मिली...
© trehan abhishek


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