शाम की तरह हम ढलते जा रहे है,
बिना किसी मंजिल के चलते जा रहे है।
लम्हे जो सम्हाल के रखे थे जीने के लिये ,
वो खर्च किये बिना ही पिघलते जा रहे है।
धुये की तरह विखर गयी जिन्दगी मेरी हवाओ मैं,
बचे हुये लम्हे सिगरेट की तरह जलते जा रहे है।
#Shayari#samay#लौट_कर_नही_आता