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शाम की तरह हम ढलते जा रहे है, बिना किसी मंजिल के च

शाम की तरह हम ढलते जा रहे है,
बिना किसी मंजिल के चलते जा रहे है।
लम्हे जो सम्हाल के रखे थे जीने के लिये ,
वो खर्च किये बिना ही पिघलते जा रहे है।

धुये की तरह विखर गयी जिन्दगी मेरी हवाओ मैं,
बचे हुये लम्हे सिगरेट की तरह जलते जा रहे है।

जो मिल गया उसी का हाथ थाम लिया,
हम कपडो की तरह हमसफर बदलते जा रहे है।

credit जागेश तिवारी

©Ankur Mishra
  शाम की तरह हम ढलते जा रहे है,
बिना किसी मंजिल के चलते जा रहे है।
लम्हे जो सम्हाल के रखे थे जीने के लिये ,
वो खर्च किये बिना ही पिघलते जा रहे है।

धुये की तरह विखर गयी जिन्दगी मेरी हवाओ मैं,
बचे हुये लम्हे सिगरेट की तरह जलते जा रहे है।

शाम की तरह हम ढलते जा रहे है, बिना किसी मंजिल के चलते जा रहे है। लम्हे जो सम्हाल के रखे थे जीने के लिये , वो खर्च किये बिना ही पिघलते जा रहे है। धुये की तरह विखर गयी जिन्दगी मेरी हवाओ मैं, बचे हुये लम्हे सिगरेट की तरह जलते जा रहे है। #Shayari #samay #लौट_कर_नही_आता

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