भागम भाग में फंसी जिंदगी कहां रही अब पाक बंदगी इबादत भी नाम की रह गई उल्फत बस काम सी रह गई मशीनों में फसी मशीनी सी ज़िंदगी इंसान की इंसान तक नुमाइंदगी परिंदों के लिए अब कहां घोंसले बस खुद तक सीमित है अब हौंसले सब रहते है औरों के भरोसे बेसहारा अपने भाग्य को कोसे खुला आसमां भी नाम का रह गया आम भी आम बन कर रह गया अब नहीं रही वो मासूमियत दुनिया के बदलने पर होती है हैरत पानी का तो रंग बदल गया मौसम का ढंग बदल गया अब फैली सब जगह गंदगी कहां रही अब सादगी ।। बदलती ज़िन्दगी #life#God#musing#poetry#nojotohindi#kakakaksh