जितना शराफ़त से चलना चाहा हमने दुनिया ने उतने सितम हम पर किए लाख पाक रखे इरादे नाकामियों ने हमारे कदम थाम लिए कुछ भी गलत किसी के लिए ना किया हमने दुनिया ने तोहमत हम पर लगा ही दिए खुद को लाख संभालना चाहा हमने हर बार हम गिरा दिए गए गमों को सहकर फिर भी खड़े हैं हम हर ज़ुल्म हमने हंस कर सहे जीत हमारी होगी ही इक दिन उन लम्हों का बेताबी से इंतज़ार हम कर रहे •☆• जीएटीसी कोलाॅबज़ ५•☆• 《हिंदी चैलेंज ८》 नियमावली: १. आप कविता, गद्य, कहानी, पत्र, बात-चीत - किसी भी रूप में अपना कोलाॅब लिख सकते हैं। आपकी रचना मेरी पंक्तियों के विषय से मेल खानी चाहिएँ। २. आप चाहें तो कितनी भी लंबी रचना लिख सकते हैं, अनुशीर्षक में भी लिख सकते हैं। रिव्यूज़, बुकमार्कज़ एवं हाईलाईट -- संपूर्ण कृति के आधार पर ही होंगे।