आंखों से चेहरा तेरा हटता नहीं है, कमबख़्त ये ग़म क्यों घटता नहीं है.......... अल्फ़ाज़ों के ज़रिए बांटना भी चाहूं, तो इस तरह भी ये अब बंटता नहीं है........ इक हम हैं जो शाम-ओ-सहर बस, महज़ अब तेरा ही नाम लिया करते हैं........ और इक तू है कि जो कभी भी अब, इस तरह से मेरा नाम रटता नहीं है............ ©Poet Maddy आंखों से चेहरा तेरा हटता नहीं है, कमबख़्त ये ग़म क्यों घटता नहीं है.......... #Face#Eyes#Sorrow#Decrease#Share#Words#Name..........