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खड़कती हैं खिड़कियां, खाली मकान की, दरवाज़े पर भी

खड़कती हैं खिड़कियां, खाली मकान की,
दरवाज़े पर भी आहट नहीं होती,
चादर पर नहीं पड़ती सिलवटें तुम्हारी,
चाय के कप भी यहां-वहां पड़े नहीं मिलते,
गीले तौलिए बिस्तर की शान नहीं बढ़ाते अब,
तुम्हारे तेज कर्णभेदी गाने,अब नहीं सताते है मुझको,
ना ही सुबह उठते ही तुम्हारा नाश्ते का शोर,
ना शाम को बाइक उठा गायब हो जाने की आदत 
और मेरी चिंता से जान हलक में,
देर रात तुम्हारे टीवी देखने वाली लाइट,
मेरे चेहरे पर भी नहीं पड़ती अब,
अब ऐसी एक भी चीज़ नहीं जो चिढ़ाए मुझे,
कोई हरकत नहीं जो गुस्सा दिलाए मुझे,
उस दिन चिढ़ा कर गए थे ना मुझे 
"देख लेना लौटूंगा नहीं",
और मैंने भी झुंझला कर कह दिया "हां बाबा मत आना",
पकड़ी थी लास्ट लोकल उस दिन तुमने,
क्या जानती थी कि वो ट्रेन में रखा बारूद,
छीन लेगा मेरा गुस्सा,मेरी झुंझलाहट,मेरा तुम पर हक़,
अब तो करीने से सजा है घर सारा,
फिर भी इतनी बेतरतीब सी क्यूं लग रही हूं मैं? We never know which is the last moment with our loved ones..never let them go angry..live each and every moment with them to the fullest,because once they are gone only one word is left with us "काश"..

खड़कती हैं खिड़कियां, खाली मकान की,
दरवाज़े पर भी आहट नहीं होती,
चादर पर नहीं पड़ती सिलवटें तुम्हारी,
चाय के कप भी यहां-वहां पड़े नहीं मिलते,
गीले तौलिए बिस्तर की शान नहीं बढ़ाते अब,
तुम्हारे तेज कर्णभेदी गाने,अब नहीं सताते है मुझको,
खड़कती हैं खिड़कियां, खाली मकान की,
दरवाज़े पर भी आहट नहीं होती,
चादर पर नहीं पड़ती सिलवटें तुम्हारी,
चाय के कप भी यहां-वहां पड़े नहीं मिलते,
गीले तौलिए बिस्तर की शान नहीं बढ़ाते अब,
तुम्हारे तेज कर्णभेदी गाने,अब नहीं सताते है मुझको,
ना ही सुबह उठते ही तुम्हारा नाश्ते का शोर,
ना शाम को बाइक उठा गायब हो जाने की आदत 
और मेरी चिंता से जान हलक में,
देर रात तुम्हारे टीवी देखने वाली लाइट,
मेरे चेहरे पर भी नहीं पड़ती अब,
अब ऐसी एक भी चीज़ नहीं जो चिढ़ाए मुझे,
कोई हरकत नहीं जो गुस्सा दिलाए मुझे,
उस दिन चिढ़ा कर गए थे ना मुझे 
"देख लेना लौटूंगा नहीं",
और मैंने भी झुंझला कर कह दिया "हां बाबा मत आना",
पकड़ी थी लास्ट लोकल उस दिन तुमने,
क्या जानती थी कि वो ट्रेन में रखा बारूद,
छीन लेगा मेरा गुस्सा,मेरी झुंझलाहट,मेरा तुम पर हक़,
अब तो करीने से सजा है घर सारा,
फिर भी इतनी बेतरतीब सी क्यूं लग रही हूं मैं? We never know which is the last moment with our loved ones..never let them go angry..live each and every moment with them to the fullest,because once they are gone only one word is left with us "काश"..

खड़कती हैं खिड़कियां, खाली मकान की,
दरवाज़े पर भी आहट नहीं होती,
चादर पर नहीं पड़ती सिलवटें तुम्हारी,
चाय के कप भी यहां-वहां पड़े नहीं मिलते,
गीले तौलिए बिस्तर की शान नहीं बढ़ाते अब,
तुम्हारे तेज कर्णभेदी गाने,अब नहीं सताते है मुझको,

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